मिनावहीनींचे अभंग :- १
वेडे खुळे मन बावरे, घाबरे ।
क्षण ना सोडे साईस पाहे ।
प्रकटा साईनाथ घरी वचने || धृ ॥
"ज्ञानाचे मज शब्द न कळती |
अर्थ तयांच्या पारिच असती |
यावे साई, उतरा हृदयी उतरा सदनी |
कळेल ऎसे यावे सजुनी || १ ॥
मुर्तितचि तू का रे थांबसी |
मजसी म्हणे जर तव मूर्ती तोडसी |
होईल मूर्ती माझी नाचती |
साई फ़ोड मज ऎसी विनवणी || २ ॥
ठरल्या दिवशी ठरल्या काळी |
अलगद उदया आला तरणी |
तसबिरीत रूप तयाचे |
बाह्यप्रदेशी रूप साईचे || ३ ॥
वेडे खुळे मन नाचे डोले |
क्षण ना सोडे बापूसी पाहे |
वेडीच होऊनी वैनी राहे |
प्रकटला साईनाथ घरी वचने || ४ ||
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मिनावहीनींचे अभंग :- २
मनी जागसी जेव्हा हरिस्मरनि |
अनिरुद्ध हरितसे भय सहजी || धृ ॥
स्वार्थभरी लाभांच्या पोटी |
शक्तीबिजे तू भक्षिसी भाजुनी |
भर्जित बीजे ना अंकुरती ।
एक बीज तू घे रे मागुनी || १ ॥
अनिरुद्धांच्या नामस्मरणी |
असती असंख्य बीजांच्या खाणी |
देत्या हाता पाहणे सोडूनी ।
लोळ, लोळ तू त्याच्या चरणी || २ ॥
बीज तेथले मिळेल जेंव्हा |
कैसा वृक्ष तयाचा व्हावा ।
ह्याची काळजी तुजसी न जीवा ।
ज्याची करणी त्यासी ध्यावा || ३ ॥
धर्म , अर्थ अन काम असू दे |
तृप्ती मिळण्या सत्शक्ती लागे |
तिचिया दानी हाची तत्पर |
स्वानुभवाचे वैनी सांगे || ४ ||
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